आप शायद जानते हैं, परमेश्वर ने मूसा को सिनै पर्वत के शिखर पर, दस आज्ञाएँ दी। लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि उस समय, परमेश्वर ने, सबसे रहस्यमयी संरचनाओं में से एक के लिए मूसा को नक्शा दिया था? इसे पवित्र स्थान कहा जाता है, एक अनूठा मंदिर जो उसके लोगों के बीच परमेश्वर के निवास स्थान को दर्शाता था। इसकी पूरी संरचना और सेवाओं ने, आज़ाद किये गए दासों के इस राष्ट्र को, उद्धार की योजना की, तीन-आयामी, परिदृश्य दिखाया। पवित्र स्थान के रहस्यों में सावधानीपूर्वक नजर डालने से आपकी समझ में वृद्धि होगी और सुधार आएगा, कि कैसे यीशु उन्हें बचाता है जो खो गए हैं और कैसे कलीसिया की अगुवाई करता है। पवित्र स्थान कई अद्भुत भविष्यवाणियों को समझने की कुंजी भी है। एक रोमांचक यात्रा आपका इंतजार कर रही है क्योंकि यह अध्ययन संदर्शिका, पवित्र भवन और इसके छिपे हुए अर्थों की खोज करती है!
1. परमेश्वर ने मूसा को क्या बनाने के लिए कहा?
“वे मेरे लिये एक पवित्रस्थान बनाएँ कि मैं उनके बीच निवास करूँ ” (निर्गमन 25:8)।
उत्तर: परमेश्वर ने मूसा को एक पवित्र स्थान बनाने के लिए कहा - एक विशेष भवन जो स्वर्ग के परमेश्वर के लिए निवास स्थान के रूप में काम करती।
पवित्र स्थान का एक संक्षिप्त विवरण मूल पवित्र स्थान एक मनोहर, तम्बू-आकार की संरचना (15 फीट पर 45 फीट 15 फीट-18 इंच की चौड़ाई के आधार पर) था जिसमें परमश्वेर की उपस्थिति और विशषे सेवाएँ आयोजित की जाती थीं। दीवारों को चांदी के छल्लों से जोड़े गए लकड़ी के पटरों से बनाया और सोने से मढ़ा गया था (निर्गमन 26:15-19, 29)। छत, चार आवरणों से बना था: सन के कपड़े, बकरी के बाल, मेढें की खाल, और सूइस त्वचा (निर्गमन 26:1, 7-14)। इसमें दो कमरे थे: पवित्र स्थान और महा पवित्र स्थान। एक मोटे,भारी पर्दे ने कमरे को दो भागों में बाँट दिया था। आँगन-पवित्र स्थान के आस-पास का क्षेत्रफल 75 फीट चौड़ा और 150 फीट लंबा (निर्गमन 27:1) था। यह पीतल के 60 खम्बों (निर्गमन 27:9-16) में लगे सन कपड़े से घिरा हुआ था।
2. परमेश्वर ने अपने लोगों को पवित्र भवन से क्या सीखने की उम्मीद की?
“हे परमेश्वर, तेरा मार्ग, पवित्र स्थान में है; कौन सा देवता परमेश्वर के तुल्य बड़ा है?” (भजन संहिता 77:13)।
उत्तर: परमेश्वर का मार्ग , उद्धार की योजना, पृथ्वी पर पवित्र स्थान में प्रकट होती है। बाइबल सिखाती है कि पवित्र स्थान में सबकु छ-निवास, लकड़ी का सामान और सेवाएँ – उन चीजों के प्रतीक हैं जो यीशु ने हमें बचाने के लिए किया। इसका मतलब है यह कि हम उद्धार की योजना को पूरी तरह से समझ सकते हैं जैसे जैसे हम पवित्र भवन से जुड़े प्रतीकात्मकता को पूरी तरह से समझते हैं। इस प्रकार, इस अध्ययन संदर्शिका के महत्व को अधिक बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
3. मूसा ने पवित्र स्थान के लिए नक्शा, किस स्रोत से प्राप्त किया था? भवन किस की एक नक़ल थी?
“अब जो बातें हम कह रहे हैं उनमें से सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा ऐसा महायाजक है, जो स्वर्ग पर महामहिमन् के सिंहासन के दाहिने जा बैठा है, और पवित्रस्थान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, वरन् प्रभु ने खड़ा किया है ... याजक ... स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब की सेवा करते हैं; जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, “देख, जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना” (इब्रानियों 8:1, 2, 4, 5)।
उत्तर: परमेश्वर ने स्वयं मूसा को पवित्र स्थान के निर्माण के लिए विशेष निर्देश दिए। यह भवन स्वर्ग के मूल पवित्र स्थान का ही एक नमूना था।
4. आंगन में क्या सामान था?
उत्तर:
क. होमबलि की वेदी, प्रवेश द्वार के अंदर स्थित था (निर्गमन 27:1-8)। यह वेदी मसीह के क्रूस का प्रतीक थी। पशु, यीशु का प्रतीक है, जो अंतिम परम बलिदान है (यूहन्ना 1:29)।
ख. हौदी, वेदी और पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार के बीच स्थित हौदी, पीतल से बना एक बड़ा बर्तन था। यहाँ याजक बलि चढ़ाने या पवित्र स्थान में प्रवेश करने से पहले अपने हाथ और पैरों को धोया करता था (निर्गमन 30:17-21; 38:8)। पानी पाप से शुद्ध और नए जन्म का प्रतीक है (तीतुस 3:5)।
5. पवित्र स्थान में क्या था?
उत्तर:
क. पवित्र मेज़
(निर्ग मन 25:23-30) जीवन की रोटी (यूहन्ना 6:51) अर्थात यीशु का प्रतीक है।
ख.सोने की दीवट
(निर्गमन 25:31-40) भी यीशु का प्रतीक है, जो जगत की ज्योति है (यूहन्ना 9:5; 1:9)। तेल पवित्र आत्मा का प्रतीक है (जकर्याह 4:1-6; प्रकाशितवाक्य 4:5)।
ग. धूप-वेदी (निर्ग मन 30:7, 8) परमेश्वर के लोगों की प्रार्थनाओं का प्रतीक है (प्रकाशितवाक्य 5:8)।
6. महा पवित्र स्थान में क्या था?
उत्तर: वाचा का सन्दूक, (निर्गमन 25:10-22) महा पवित्र स्थान का एकमात्र सामान था, जो सोना मढ़े हुए बबूल की लकड़ी से बना संदूक था। महा पवित्र स्थान में संदूक के ऊपर ठोस सोने से बने दो स्वर्गदूत रखे थे। इन दो स्वर्गदूतों के बीच प्रायश्चित्त का ढकन (निर्गमन 25:17-22) था, जहाँ परमश्वेर की उपस्थिति रहती थी। यह स्वर्ग में परमेश्वर के सिंहासन का प्रतीक था,जो इसी तरह दो स्वर्गदूतों (भजन संहि ता 80:1) के बीच स्थित है।
7. संदूक के अंदर क्या था?
उत्तर: दस आज्ञाएँ , जिन्हें परमेश्वर ने पत्थर की तख़्तियों पर लिखा था, जिन्हें उनके लोग हमेशा पालन करेंगे (प्रकाशितवाक्य 14:12),सन्दूक के अंदर थे (व्यवस्थाविवरण 10:4, 5)। परन्तु प्रायश्चित्त का दक्कन उसके ऊपर था, जो दर्शाता है कि जब तक परमेश्वर के लोग अपना पाप स्वीकर करते हैं और पाप को त्यागते हैं (नीतिवचन 28:13), तब तक याजक द्वारा प्रायश्चित्त के ढकने पर लहू छिड़कने के द्वारा उनपर दया की जाएगी (लैव्यव्यवस्था 16:15,16)। पशु का लहू यीशु के लहू का प्रतीक था जो वह हमारे पापों के क्षमा के लिए बहाने वाला था (मत्ती 26:28; इब्रानियों 9:22)।
8. पवित्र स्थान की सेवाओं में पशुओं की बलि चढ़ा ने की ज़रू रत क्यों थी?
“सच तो यह है कि व्यवस्था के अनुसार प्राय: सब वस्तुएँ लहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं, और बिना लहू बहाए पापों की क्षमा नहीं” (इब्रानियों 9:22)। “यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है” (मत्ती 26:28)।
उत्तर: लोगों को यह समझने में मदद करने के लिए पशुओं का बलिदान आवश्यक था कि यीशु के लहू बहाए बिना, उनके पापों को कभी माफ नहीं किया जा सकता था। बदसूरत, चौंकाने वाली सच्चाई यह है कि पाप मजदूरी अनंत मृत्यु है (रोमियों 6:23)। चूंकि हम सभी ने पाप किया है, हम सभी मृत्यु के हकदार हैं। जब आदम और हव्वा ने पाप किया, तो वे उसी वक्त मर गए होते, परन्तु यीशु के कारण, जिन्होंने आगे बढ़ कर सभी लोगों के लिए, मृत्युदंड का भुगतान करने के लिए, बलिदान के रूप में अपना पूरा जीवन प्रस्तुत किया, (यूहन्ना 3:16; प्रकाशितवाक्य 13:8)। पाप के बाद, परमेश्वर ने पापियों को पशुओं को बलिदान करने का निर्देश दिया था (उत्पत्ति 4:3-7)। पापी को पशु को अपने हाथ से मारना था (लैव्यव्यवस्था 1:4, 5)। यह खूनी और चौंकाने वाला था, और यह पापी को पाप के भयानक परिणामों (अन्नत मृत्यु) और उद्धारकर्ता की आवश्यकता की गंभीर वास्त विकता का एहसास दिलाता था। एक उद्धारकर्ता के बिना, किसी को भी उद्धार की कोई उम्मीद नहीं है। बलिदान प्रणाली, मारे गए पशुओं के प्रतीक के माध्यम से सिखाता था कि परमेश्वर हमारे पापों के लिए मरने के लिए अपने पुत्र को दे देंगे (1 कुरिन्थियों 15:3)। यीशु न केवल उनके उद्धारकर्ता बनेंगे, बल्कि उनके विकल्प भी होंगे (इब्रानियों 9:28)। जब यूहन्ना , बपतिस्मा देने वाला, यीशु से मिला, तो उसने कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29)। पुराने नियम में, लोग उद्धार के लिए क्रूस की प्रतीक्षा कर रहे थे। हम उद्धार के लिए कलवरी की ओर देखते हैं। उद्धार का कोई अन्य स्रोत नहीं है (प्रेरितों 4:12)।
9. पवित्र स्थान की सेवाओं में पशुओं का बलिदान कैसे किया जाता था, और इसका अर्थ क्या था?
“वह अपना हाथ होमबलि पशु के सिर पर रखे, और वह उसके लिये प्रायश्चित्त करने को ग्रहण किया जाएगा। ... वह उसको यहोवा के आगे वेदी के उत्तरी ओर बलि करे” (लैव्यव्यवस्था 1:4, 11)।
उत्तर: जब एक पापी, आंगन के द्वार पर एक बलिदान के लिए पशु लाता था, तो एक याजक उसे एक चाकू और बर्तन सौंप देता था। पापी पशु के सिर पर अपना हाथ रख कर अपने पापों को स्वीकार करता था। यह पाप का पापी से पशु में हस्तां तरण होने का प्रतीक था। उस समय, पापी को निर्दोष माना जाता था और पशु दोषी माना जाता था। चँकिू पशु अब प्रतीकात्मक रूप से दोषी था, इसलिए उसे पाप की मजदूरी-मृत्यु का भुगतान करना पड़ा था। जानवर को अपने हाथ से मारकर, पापियों को इस प्रकार स्पष्ट रूप से सिखाया गया कि पाप एक निर्दोष पशु की मृत्यु का कारण बना और उसका पाप निर्दोष मसीहा के मृत्यु का कारण बन जाएगा।
10. जब सारी मण्डली के लिए एक पशु का बलिदान किया गया, तो याजक ने उसके लहू से क्या किया? यह किसका प्रतीक है?
“तब अभिषिक्त याजक बछड़े के लहू में से कुछ मिलापवाले तम्बू में ले जाए; 17 और याजक अपनी उंगली लहू में डुबो-डुबोकर उसे बीचवाले परदे के आगे सात बार यहोवा के सामने छिड़के ” (लैव्यव्यवस्था 4:16, 17)।
उत्तर: जब सारी मण्डली के पापों के लिए बलिदान किया जाता था, तब याजक, जो यीशु का प्रतीक था (इब्रानियों 3:1), लहू को पवित्र स्थान में ले जाता था और उस पर्दे पर छिड़कता था जो कमरे को दो भागों में विभाजित करता था। परदे के दूसरी तरफ परमेश्वर की उपस्थिति रहती थी। इस प्रकार, लोगों के पापों को हटा दिया जाता था और प्रतीकात्मक रूप से पवित्र स्थान में स्थानांतरित कर दिया जाता था। याजक द्वारा लहू का यह सेवकाई यीशु द्वारा स्वर्ग में कि जा रही वर्तमान सेवकाई को दर्शाता थी। पाप के लिए बलिदान के रूप में क्रूस पर यीशु की मृत्यु के बाद, वह जीवित उठकर स्वर्गीय पवित्र स्थान में अपने लहू की सेवकाई करने के लिए, हमारे याजक के रूप में स्वर्ग गया (इब्रानियों 9:11, 12)। धरती पर याजक द्वारा किए जानेवाले लहू सेवकाई इस बात का प्रतीक है कि यीशु स्वर्ग में हमारे पापों के लेखों पर अपना लहू लगा रहा है जो यह दिखाते हैं कि उसके नाम से अपने पापों को स्वीकारते हैं तो उन्हें क्षमा कर दिया जाता है (1 यूहन्ना 1:9)।
11.पवित्र स्थान की सेवाओं के आधार पर, यीशु ने अपने लोगों की, किन दो प्रमुख योग्यताओं में होकर सेवा की है? हमें उसके द्वारा, प्रेमी सेवा से क्या शानदार फायदे मिलते हैं?
“हमारा भी फसह, जो मसीह है, बलिदान हुआ है” (1 कुरिन्थियों 5:7)। “इसलिये जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्वर्गों से होकर गया है, अर्थात् परमेश्वर का पुत्र यीशु, तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें। क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दु:खी न हो सके; वरन् वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बाँधकर चलें कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएँ जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” (इब्रानियों 4:14-16)।
उत्तर: यीशु हमारे पापों के लिए बलिदान और हमारे स्वर्गीय महायाजक के रूप में कार्य करता है। हमारे बलिदान, मेमने और एक विकल्प के रूप में यीशु की मृत्यु, और हमारे स्वर्गीय याजक के रूप में उनके निरंतर शक्तिशाली सेवकाई से हमारे लिए दो अविश्वसनीय चमत्कार सिद्ध किए:
क. संपूर्ण परिवर्तन जिसे नया जन्म कहा जाता है, साथ ही अतीत के सभी पापों की क्षमा (यूहन्ना 3:3-6; रोमियों 3:25)।
ख. वर्तमान और भविष्य में सही काम करने की शक्ति (तीतुस 2:14; फिलिप्पियों 2:13)।
ये दो चमत्कार एक व्यक्ति को धर्मी बनाते हैं - जिसका मतलब है कि व्यक्ति और परमेश्वर के बीच सही संबंध मौजूद है। किसी व्यक्ति के कामों (अपने स्वयं के प्रयासों) से धर्मी बनने का कोई भी संभावित तरीका नहीं है क्योंकि धार्मिकता के लिए चमत्कारों की आवश्यकता होती है जो केवल यीशु ही कर सकते हैं (प्रेरितों 4:12)। एक व्यक्ति उद्धारकर्ता पर भरोसा करता है कि वह उसके लिए वह कर सके जो वह अपने लिए नहीं कर सकता। बाइबल के शब्द “विश्वास से धार्मिकता” का यही अर्थ है। हम यीशु को हमारे जीवन का शासक बनने के लिए कहते हैं और आवश्यक चमत्कारी काम करने के लिए भरोसा करते हैं, जैसे ही हम उसके साथ पूरी तरह से सहयोग करते हैं। यह सच्चाई, जो हमारे अंदर और हमारे लिए, मसीह द्वारा चमत्कारी रूप से पूरी की गयी है, एकमात्र सच्चाई है जिसका अस्तित्व है। इसके अतिरिक्त सब जाल साजी है।
12. बाइबल हमें कौन से छ: धार्मिक वायदों के विषय में बताते हैं, जो यीशु के माध्यम से हमें प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
क. वह हमारे पिछले पापों को ढक लेगा, और हमें निर्दोष के रूप में गिनेगा (यशायाह 44:22; 1 यूहन्ना 1:9)।
ख. हम शुरुआत में परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए थे (उत्पत्ति 1:26, 27)। यीशु ने हमें परमेश्वर के स्वरूप में पुनः स्थापित करने का वादा किया (रोमियों 8:29)।
ग. यीशु हमें धर्मी जीवन जीने की इच्छा देता है और फिर हमें वास्तव में इसे पूरा करने की शक्ति देता है (फिलिप्पियों 2:13)।
घ. यीशु, अपनी चमत्कारी शक्ति से, हमें खुशी से केवल उन चीजों को करने की इच्छा देगा, जो परमेश्वर को खुश करती हैं (इब्रानियों 13:20, 21; यूहन्ना 15:11)।
ङ. वह हमें, अपने पापहीन जीवन और प्रायश्चित की मृत्यु (2 कुरिन्थियों 5:21) में श्रेय देकर हमारी मृत्यु की सज़ा को मिटा देता है।
च. यीशु अपने लौटने तक स्वर्ग ले जाने लिए वफादार बनाए रखने की ज़िम्मेदारी लेता है (फिलिप्पियों 1:6; यहूदा 1:24)।
यीशु आपके जीवन में इन सभी शानदार वादों को पूरा करने के लिए तैयार है! क्या आप तैयार हैं?
13. विश्वास से धर्मी बनने के लिए क्या किसी व्यक्ति की कोई भूमिका है
“जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है” (मत्ती 7:21)।
उत्तर: हाँ। यीशु ने कहा कि हमें उसके पिता की इच्छा पूरी करनी होगी। पुराने नियम के दिनों में, एक व्यक्ति जो वास्तव में परिवर्तित होता था, वह बलिदान के लिए नियमित रूप से एक मेमना लाता था, जो पाप के लिए उसके दुख और संपूर्ण हृदय से परमेश्वर को अपने जीवन में नेतृत्व करने देने की इच्छा को दर्शाता था। आज, भले ही हम धर्मी बनने के लिए आवश्यक चमत्कार नहीं कर सकते हैं, फिर भी हमें अपने आप को रोज़ाना, यीशु को समर्पित करना होगा (1 कुरिन्थियों 15:31), हमें अपने जीवन को निर्देशित करने के लिए, यीशु को आमंत्रित करना चाहिए, ताकि चमत्कार हो सके । हमें आज्ञाकारी बनने और यीशु को नेतृत्व करने देने के लिए तैयार होना चाहिए (यूहन्ना 12:26; यशायाह 1:18-20)। हमारी पापी प्रकृति हमें अपने ही रास्ते पर चलाना चाहती है (यशायाह 53:6) और इस तरह हम परमेश्वर के विरुद्ध हो जाते हैं, जैसा कि शैतान ने शुरुआत में किया था (यशायाह 14:12-14)। यीशु को अपने जीवन पर शासन करने की इजाजत देना कभी-कभी आँखें निकाल देने या एक हाथ को अलग कर देने जितना मुश्किल होता है (मत्ती 5:29, 30), क्योंकि पाप नशे की लत जैसे है और केवल परमेश्वर की चमत्कारी शक्ति से दूर हो सकता है (मरकुस 10:27)। बहुत से लोग मानते हैं कि यीशु उनको स्वर्ग महज इसलिए ले जाएगा, क्योंकि उद्धार पाने का दावा करते हैं, भले ही उनका आचरण कैसा भी हो। लेकिन ऐसा नहीं है। यह एक धोखा है। एक मसीही को यीशु के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए (1 पतरस 2:21)। यीशु का शक्तिशाली लहू हमारे लिए यह पूरा कर सकता है (इब्रानियों 13:12), लकिेन सिर्फ तब, जब हम यीशु को अपने जीवन का पूर्ण नियंत्रण देते हैं और वह जहाँ बढ़ता है, हम वहाँ उसके साथ जाते हैं; यहाँ तक कि तब भी जब रास्ता कभी-कभी बाधाओं वाला हो (मती 7:13, 14,21)।
14. प्रायश्चित्त का दिन क्या था?
उत्तर:
क. प्रत्येक वर्ष प्रायश्चित्त का दिन, इज़राइल में निर्णय का एक गंभीर दिन हुआ करता था (लैव्यव्यवस्था 23:27)। सभी को अपने हर पाप को स्वीकारना होता था। जो लोग इनकार करते थे वे उसी दिन इस्राएल के शिविर से हमेशा के लिए हटा दिए जाते थे (लैव्यव्यवस्था 23:29)।
ख. बकरों का चयन किया जाता था: एक, परमेश्वर का बकरा और दूसरा, बलि का बकरा जो शैतान को दर्शाता था (लैव्यव्यवस्था 16:8)। परमेश्वर के बकरे का बलिदान किया जाता था और लोगों के पापों के लिए भेंट दी जाती थी (लैव्यव्यवस्था 16:9)। लेकिन इस दिन रक्त को महा पवित्र स्थान में ले जाया जाता था और प्रायश्चित्त के ढक्कन पर और उसके आगे छिड़क दिया जाता था (लैव्यव्यवस्था 16:14)। केवल इस विशेष फैसले के दिन महायाजक प्रायश्चित्त के ढक्कन पर परमेश्वर से मिलने के लिए महा पवित्र स्थान में प्रवेश करके प्रायश्चित्त के ढक्कन के समक्ष जाता था। छिड़का गया रक्त (यीशु के बलिदान का प्रतिनिधित्व) परमेश्वर द्वारा स्वीकार किया जाता था, और लोगों के द्वारा कबूल किए गए पाप, पवित्र स्थान से महायाजक में स्थानांतरित कर दिए जाते थे। उसके बाद वह इन कबूल किए गए पापों को शैतान के बकरे, पर स्थानांतरित कर देता था, जिसे जंगल में ले जाया जाता था (लैव्यव्यवस्था 16:16, 20-22)। इस तरह, पवित्र स्थान लोगों के पापों से शुद्ध हो जाता था, जो वह पर्दे पर लहू के छिड़काव से वहाँ स्थानांतरित हो जाते थे और एक वर्ष तक जमा होते रहेते थे
15. क्या प्रायश्चित्त का दिन परमेश्वर के उद्धार की योजना के एक हिस्से का प्रतीक या पूर्वाभास था जैसे कि पृथ्वी के पवित्रस्थान, और इसकी सेवा के अन्य पहलुओं का था?
“इसलिये अवश्य है कि स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप इन बलिदानों के द्वारा शुद्ध किए जाएँ, पर स्वर्ग में की वस्तुएँ स्वयं इनसे उत्तम बलिदानों के द्वारा शुद्ध की जातीं” (इब्रानियों 9:23)।
उत्तर: हाँ। उस दिन की सेवाएँ , स्वर्गीय पवित्र स्थान में असली महायाजक द्वारा, हमारे पापों के मिटा दिये जाने के प्रतीक हैं। अपने बहते रक्त के माध्यम से जीवन की पुस्तक में लिखे गए लोगों के लिए, मसीह अपने लोगों के निर्णयों की पुष्टि करेगा कि वे हमेशा उस की सेवा करेंगे। यह विशेष निर्णय दिवस, इस्राएल के योम कि पपुर की तरह, पृथ्वी के लिए अंतिम प्रायश्चित्त का पूर्वभास करता है। प्राचीन वार्षिक प्रायश्चित के दिन के प्रतीक से, पूरी मानवता को आश्वासन दिया जाता है कि हमारा वफादार महायाजक, यीशु अभी भी अपने लोगों के लिए स्वर्ग में मध्यस्थता कर रहा है और अपने बहाए रक्त में विश्वास करने वाले लोगों के सभी पापों को दूर करने के लिए तैयार हैं। अंतिम प्रायश्चित, अंतिम न्याय की ओर अगुवाई करता है, जो हर व्यक्ति के जीवन में पाप के प्रश्न को सुलझाता है, जिसके परिणाम जीवन या मत्यु है।
अत्यन्त महत्वपूर्ण घटनाएँ
आप अगली दो अध्ययन संदर्शिकाओं में पृथ्वी पर पवित्र स्थान की प्रतीकात्मकता और विशेष रूप से प्रायश्चित के दिन के अंत समय की महत्वपूर्ण घटनाओं को जानेंगे जिसे परमेश्वर स्वर्गीय पवित्र स्थान से संचालित करेगा।
न्याय की तिथि
अगली अध्ययन संदर्शिका में हम एक बाइबल की महत्वपूर्ण भविष्यवाणी की जांच करेंगे जिसमें परमेश्वर स्वर्गीय न्याय शुरू करने की तारीख निर्धारित करता है। वास्तव में रोमांचकारी है!
16. क्या आप सच्चाई स्वीकार करने के इच्छुक हैं जो आपके लिए नया हो सकता है, जैसे ही परमेश्वर ने इसे प्रकाशित करते हैं?
आपका उत्तर:
सारांश पत्र
1. पवित्र स्थान के आंगन में कौन सी वस्तुएं थीं? (2)
_____ प्रायश्चित्त का ढकन।
_____ हौदी।
_____ कुर्सियां
_____ वेदी।
2. प्रायश्चित्त के ढकन पर परमेश्वर की उपस्थिति रहती थी। (1)
_____ हाँ।
_____ नहीं।
3. नीचे दिए गाए शब्दों को ख़ाली स्थान में भरें: (1)
क्रुस यीशु शुद्धता प्रार्थनाएं ज्योति
उदाहरण: होमबलि की बेदी क्रुस को दर्शाता है।
हौदी पाप से _________ को दर्शती है।
पवित्र मेज़ __________ को जीवन की रोटी दर्शती है।
सोने का दिवट यीशु को दुनिया की _________ दर्शती है।
धूप वेदी परमेश्वर के लोगों की __________ दर्शती है।
4. पवित्र स्थान और इसकी सेवाओं का उद्देश्य था (1)
_____ लोगों को स्वर्गदूतों को समझने में सहायता करना।
_____ लोगों के लिए मांसाहारी भोजन प्रदान करना।
_____ उद्धार की योजना का प्रतीक।
5. पवित्र स्थान की योजना किसने बनाई? (1)
_____ नूह।
_____ एक स्वर्गदूत। _____ हारून।
_____ परमेश्वर।
6. दस आज्ञाएँ वाचा के सन्दूक के अंदर थीं। (1)
_____ हाँ।
_____ नहीं।
7. मारे जाने वाला बलिदान का पशु किसका प्रतीक है (1)
_____ पवित्र आत्मा।
_____ युद्ध।
_____ यीशु
8. पवित्र स्थान के आधार पर, यीशु ने हमारी सेवा किन दो क्षमताओं में की है? (2)
_____ राजा।
_____ बलिदान।
_____ महायाजक।
_____ ब्रह्मांड का शासक।
9. पृथ्वी के पवित्र स्थान के विषय में से कौन की बात सत्य है? (2)
_____ इसमें तीन कमरे थे।
_____ इसकी संरचना एक तम्बू के जैसी थी।
_____ इसका आकार 500 फीट पर 1000 फीट था।
_____ उसका आंगन पीतल के खंभों और सन के कपड़े से बना था।
_____ छत मिस्र की खपरों (टाइल) से बनी थी।
_____ हौदी महा पवित्र स्थान में था।
10. विश्वास से धार्मिकता ही एकमात्र सच्ची धार्मिकता है। (1)
_____ हाँ।
_____ नहीं।
11. विश्वास से धार्मिकता आती है (1)
_____ मनुष्य के कामों से।
_____ बपतिस्मा लेने से।
_____ सिर्फ यीशु मसीह में विश्वास से।.
12. एक पापी के द्वारा लाए गए बलिदान के पशु को कौन मारता था? (1)
_____ परमेश्वर।
_____ याजक।
_____ पापी।
13. यीशु हमें जो धार्मिकता देता है उसके बारे में कौन सी बातें सत्य है? (3)
_____ यह हमें परमेश्वर के स्वरूप में पुनः स्थापित करेगा।
_____ यह चमत्कारी नहीं है।
_____ हमारे अच्छे काम इसका एक बड़ा हिस्सा हैं।
_____ यह हमारे पिछले पापों को ढापता है।
_____ यह हमें सही जीवन जीने की इच्छा देता है।
_____ यह ऐसे पापों को ढापता है जिन्हें छोड़ना नहीं चाहते।
14. प्रायश्चित्त के दिन के बारे में निम्नलि खित में से कौन सी बातें सच है? (4)
_____ यह महीने में एक बार होता था।
_____ यह न्याय का दिन होता था।
_____ यह खेल का और बहुत आनन्द का दिन था।
_____ यह अंतिम न्याया का प्रतीक था।
_____ बलि का बकरा, शैतान का प्रतीक था।.
_____ रक्त को महा पवित्र स्थान में ले जाया जाता था।
15. धार्मिकता का अर्थ परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता है। (1)
_____ हाँ।
_____ नहीं।
16. एक पशु को मारने से लोगों को यह एहसास होता था कि पाप सभी लोगों पर मौत की सजा लाता है। (1)
_____ हाँ
_____ नहीं।
17. क्या आप मसीह की धार्मिकता को स्वीकार करने के इच्छुक हैं, जिसमें क्षमा, पाप से मुक्ति, और वर्तमान और भविष्य में सही जीवन जीने की शक्ति शामिल है?
_____ हाँ
_____ नहीं।