1. क्या परमेश्वर वास्तव मेें आपकी परवाह करता है?
उसने कहा है: “मेरी दृष्टि मेें तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है और मैैं तुझ से प्रेम रखता हूूँ” (यशायाह 43:4)। “मैैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूूँ” (यिर्मयाह 31:3)।
उत्तर: आपके लिए परमेश्वर का कभी न खत्म होने वाला प्रेम मानव समझ से परे है। वह आपसे प्यार करता भले ही आप दुनिया के एकमात्र खोए हुए प्राणी क्यों ना होते। और यीशु आपके लिए अपना जीवन दे देता। भले ही कोई अन्य पापी बचाए जाने के लिए न हो। कभी न भूलेें कि आप उसकी दृष्टि मेें बहुमूल्य हैैं। वह आपसे प्रेम करता है और आपकी बहुत परवाह करता है।
2. परमेश्वर ने आपके लिए अपना प्यार कैसे दिखाया है?
“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16)। “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत मेें भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएँ। प्रेम इस मेें नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, पर इस मेें है कि उसने हम से प्रेम किया और हमारे पापोों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा” (1 यूहन्ना 4:9, 10)।
उत्तर: क्योंकि परमेश्वर आपसे इतना अधिक प्रेम करता है, वह आपसे अनंतकाल तक अलग होने के बजाय अपने एकलौते पुत्र को पीड़ित होने और मरने के लिए भेजने को तैयार था। इस तरह के बहुतायत के प्रेम को भरपूरी से समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन परमेश्वर ने आपके लिए ऐसा किया !
3. वह आप जैसे व्यक्ति से कैसे प्यार कर सकता है?
“परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस से प्रगट करता है कि जब हम अभी पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मार” (रोमियों 5:8)।
उत्तर: निश्चित रूप से इसलिए नहीं की कोई इसके योग्य है। पाप की मजदूरी को छोड़कर, जो मृत्यु है, किसी भी व्यक्ति ने कभी कुछ नहीं कमाया है (रोमियों 6:23)। परन्तु परमेश्वर का प्रेम बिना किसी शर्त का है। वह उन लोगों से प्यार करता है जिन्होंने चोरी की है, जिन्होंने व्यभिचार किया है, और यँहा तक की हत्यारों को भी। वह उन लोगों से प्यार करता है जो स्वार्थी थी हैैं, जो पाखंडी हैैं, और जो लोग नशे के आदी हैैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने क्या किया है, या आप क्या कर रहे हैैं, वह आपसे प्रेम करता है - और वह आपको पाप और उसके घातक परिणामो से बचाना चाहता है।
4. यीशु की मृत्यु ने आपके लिए क्या किया?
“देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ; और हम हैैं भी!” (1 यूहन्ना 3:1)। “परन्तु जितनो ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उनके नाम पर विश्वास करते रखते हैैं” (यूहन्ना 1:12)।
उत्तर: मसीह आपको मिले मृत्युदंड को पूरा करने के लिए मरा। वह मानव रूप मेें इसलिए पैदा हुआ ताकि मृत्यु की उस पीड़ा को सहे जिसके योग्य सभी पापी हैैं। और अब, आज, उसने जो कुछ किया उसका श्रेय आपको देने का प्रस्ताव रखा है। उसके पापरहित जीवन का श्रेय आपको दिया गया है ताकि आप धर्मी जन गिने जा सके। उसकी मृत्यु को आपके सभी गलतियोों के लिए पूर्ण भुगतान के रूप मेें स्वीकार किया गया, जब आप, उसने जो किया, उसे एक उपहार के रूप मेें स्वीकार करते हैैं, तो आप परमेश्वर के परिवार मेें उसकी संतान के रूप मेें अपनाए जाते हैैं।
5. आप यीशु को कैसे प्राप्त करते हैैं और मृत्यु से जीवन मेें कैसे जाते हैैं?
उत्तर: अपनी आवश्यकता को स्वीकार करके और उस मेें विश्वास करके।
बस तीन चीजेें स्वीकार करेें:
1. मैैं पापी हूूँ।
“सब ने पाप किया है” (रोमियों 3:23)।
2. मेरी मृत्यु के लिए मैैं अभिशापित हूूँ।
“क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है” (रोमियों 6:23)।
3. मैैं खुद को नहीं बचा सकता।
“मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5)।
फिर, तीन चीजों पर विश्वास करेें:
1. वह मेरे लिए मर गया।
“वह [यीशु] ... हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद चखे” (इब्रानियों 2:9)।
2. वह मुझे क्षमा करता है।
“यदि हम अपने पापों को मान लेें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमेें शुद्ध करने मेें विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)।
3. वह मुझे बचाता है।
“जो कोई विश्वा स करता है, अनन्त जीवन उसी का है” (यूहन्ना 6:47)।
जीवन - परिवर्तन करने वाले इन सत्ययों पर विचार करेें:
• अपने पापों के कारण, मैैं मृत्युदंड के अधीन हूूं।
• अनंत जीवन को खोए बिना मैैं इस दंड का भुगतान नहीं कर सकता हूँ। मैैं सदा के लिए मर जाऊंगा।
• मुझ पर उस चीज का उधार है जिसका मैैं भुगतान नहीं कर सकता! परन्तु यीशु कहता है, “दंड का भुगतान मैैं करूूंगा। तुम्हारे स्थान पर मैं मूँरूगा और इसके लिए श्रेय तुझे दूँगा। तुझे अपने पापों के लिए नहीं मरना पड़़ेगा।”
• मैैं उसके प्रस्ताव को स्वीकार करता हूँ! जिस क्षण मैैं अपने कर्ज़ को मानता हूँ और अपने पापों के लिए उसकी मृत्यु को स्वीकार करता हूूँ , मैैं उसकी संतान बन जाता हूूं! (सरल है, है ना?)
6. उद्धार के इस उपहार को प्राप्त करने के लिए हमेें क्या करना है?
“[हम] उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु मेें है, सेेंत-मेेंत धर्मी ठहराए जाते हैैं” (रोमियों 3:24)। “इसलिए ... मनुष्य व्यवस्था के कामों से अलग ही, विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है” (रोमियों 3:28)।
उत्तर: केवल एक काम जो आप कर सकते हैैं, वह है उद्धार को उपहार के रूप मेें स्वीकार करना। आज्ञाकारिता के हमारे काम हमेें उचित ठहराने मेें मदद नहीं करेेंगे क्योंकि हमने पहले ही पाप कर लिया हैैं और मृत्यु के योग्य हैैं। परन्तु जो कोई भी विश्वास मेें मांगेगा, उसे उद्धार मिलेगा । सबसे दुष्ट पापी को भी उसी प्रकार पूर्ण रूप से स्वीकार किया जाता है जैसे की सबसे कम पाप करने वाले को किया जाता है। आपका अतीत आपके खिलाफ नहीं गिना जाता है! याद रखेें, परमेश्वर सभी से समान रूप से प्रेम करता है और क्षमा मांगने वालों के लिए है। “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।, और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे” (इफिसियों 2:8, 9)।
7. जब आप विश्वास के द्वारा उसके परिवार मेें शामिल होते हैैं, तो यीशु आपके जीवन मेें क्या परिवर्तन करता है?
“इसलिए यदि कोई मसीह मेें है तो वह एक नई सृष्टि है: पुरानी बातेें बीत गई हैैं; देखो सब बातेें नई हो गई है” (2 कुरिन्थियों 5:17)।
उत्तर: जब आप मसीह को अपने हृदय मेें ग्रहण करते हैैं, तो वह आपके पुराने पापी स्वरूप को नष्ट करने और आपको एक नया आत्मिक प्राणी मेें बदलने की प्रक्रिया शुरू करता है। आनंद से, आप अपराध और दोष से महिमामय स्वतंत्रता का अनुभव करना शुरू करते हैैं, और पुराना पापी जीवन आपको अप्रिय हो जाता है। आप देखेेंगे कि परमेश्वर के साथ बिताया गया एक मिनट भी आपको जीवनभर शौतान का दास होने से अधिक सुख देता है। क्या परिवर्तन है! लोग इसे स्वीकार करने के लिए इतने लम्बे समय तक क्यों इंतजार करते है?
8.क्या यह परिवर्तित जीवन वास्तव मेें पुराने जीवन से अधिक हर्षित होगा?
यीशु ने कहा, “मैैं ने ये बातेें तुम से कही है ... कि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए” (यूहन्ना 15:11)। “इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्रता करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्रत हो जाओगे” (यूहन्ना 8:36)। “मैैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ” (यूहन्ना 10:10)।
उत्तर: कई लोगों का मानना है कि मसीही जीवन आत्मत्याग के कारण आनन्दमयी नहीं होगा। सच्चाई इसके ठीक विपरीत है! जब आप यीशु के प्रेम को स्वीकार करते हैैं, तो आनंद आप मेें उत्त्पन होता है। यंहा तक कि जब कठिन समय आता है, एक मसीहि परमेश्वर की आश्वस्त और शक्तिशाली उपस्थिति का आनंद क़़ाबू पाने और आवयकता के समय मेें सहायता के लिए ले सकता है (इब्रानियों 4:16)।
9. क्या आप उन सभी चीज़ों को अपने आप कर सकते हैैं जो मसीहियों को करना चाहिए?
“मैैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़़ाया गया हूूँ; अब मैैं जीवित नहीं रहा, पर मसीह मुझ मेें जीवित है” (गलतियों 2:20)। “जो मुझे सामर्थ देता है, उसमेें मैैं सब कुछ कर सकता हूूँ” (फिलिप्पियों 4:13)।
उत्तर: यह मसीही जीवन का सबसे बड़़ा चमत्कार है: मसीही होने के नाते जो आप करते हैैं वह आप मेें यीशु के जीवन का सहज प्रवाह है। आपने आप को अच्छा बनाने के लिए कोई “मजबूरी”नहीं है।आज्ञाकारिता आपके जीवन मेें परमेश्वर के प्रेम की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। परमेश्वर मेें जन्म लेने के कारण, एक नए प्राणी के रूप मेें आप उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहते हैैं क्योंकि उसका जीवन आपके जीवन का हिस्सा बन गया है। अपने प्रियजन को खुश करना आपके लिए बोझ नहीं होता है, बल्कि यह एक आनन्द है। “हे मेरे परमेश्वर, मैैं तेरी इच्छा पूरी करने मेें प्रसन्न हूूँ : और तेरी व्यवस्था मेरे अन्तःकरण मेें बसी है।” भजन संहिता 40:8।
10. क्या इसका मतलब यह है कि दस आज्ञाओं का पालन करना भी मुश्किल नहीं होगा?
“यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे” (यूहन्ना 14:15)। “ क्योंकि परमेश्वर से प्रेम रखना यह है कि हम उसकी आज्ञाओं को माने; और उसकी आज्ञाएँ कठिन नहीं” (1 यूहन्ना 5:3)। “पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमेें सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है” (1 यूहन्ना 2:5)।
उत्तर: बाइबिल आज्ञाकारिता को परमेश्वर के लिए वास्तविक प्रेम से जोड़ती है। मसीहीयो को दस आज्ञाओं का पालन करना थकाने वाला नहीं लगेगा। यीशु की प्रायश्चित मृत्यु ने आपके सभी पापों को ढकने के साथ, आपकी आज्ञाकारिता आपके विजयी जीवन मेें निहित है। क्योंकि आप अपने जीवन को बदलने के लिए उससे इतना प्रेम करते हैैं, कि आप वास्तव मेें दस आज्ञाओं की आवश्यकताओं से परे भी जायेेंगे। उसकी इच्छा जानने के लिए आप नियमिय रूप से बाइबल मेें खोज करेेंगे, उसके लिए अपने प्रेम को ज़़ाहिर करने के और ज्यादा तरीक़़े ढूंढेंगे।“और जो कुछ हम माँगते हैैं, वह हमें उससे मिलता है, क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को मानते हैैं और जो उसे भाता है वही करते हैैं” (1 यूहन्ना 3:22, जोर दिया गया)।
11. आप कैसे यकीन कर सकते हैैं कि दस आज्ञाओं को मानना विधिवादिता (नियमों से अत्यधिक लगाव) नहीं है?
“पवित्र लोगों का धीरज इसी मेें है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु पर विश्वास रखते हैैं” (प्रकाशितवाक्य 14:12)। “वे मेम्ने के लहू के कारण और अपनी गवाही के वचन के कारण उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहाँ तक की मृत्यु भी सह ली” (प्रकाशितवाक्य 12:11)।
उत्तर: “विधिवादिता” उपहार के रूप में उद्धार को स्वीकार करने के बजाए उसे अच्छे कामो के ज़रिए पाने को कोशिश करना है। बाइबल में पवित्र लोगों को चार लक्षणों वाले लोगों के रूप में पहचाना गया है: (1) आज्ञाओं को मानते हैैं, (2) मेम्ने के लहू पर विश्वास करते हैैं, (3) दूसरों के साथ अपना विश्वास साझा करते हैैं, और (4) पाप करने के बजाय मरने का चुनाव करते हैैं। ये ऐसे व्यक्ति के सही चिन्ह हैैं जो मसीह से प्यार करता है और उसका अनुसरण करना चाहता है।
12. आप कैसे यकीन कर सकते हैैं कि मसीह के साथ आपके रिश्ते मेें विश्वास और प्रेम बढ़ता रहेगा?
“तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, ... जो मेरी गवाही देता है” (यूहन्ना 5:39)। “निरंतर प्रार्थना में लगे रहो” (1 थिस्सलुनीकियो 5:17)। “अतः जैसे तुमने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है वैसे ही उसी में चलते रहो” (कुलुस्सियों 2:6)। “हे भाइयों ... मसीह यीशु में मैैं ... प्रतिदिन मरता हूँ” (1कुरिन्थियों 15:31)।
उत्तर: बातचीत के बिना कोई भी व्यक्तिगत सम्बन्ध बिना बातचीत के समृद्ध नहीं होता है। प्रार्थना और बाइबल अध्ययन परमेश्वर के साथ बातचीत के रूप हैैं, और वे आपके रिश्ते को उसके साथ बढ़ाने मेें आवश्यक हैैं। उसका वचन एक “प्रेम पत्र” है जिसे आप अपने आत्मिक जीवन को पोषित करने के लिए दैनिक रूप से पढ़ने की इच्छा रखेेंगे। प्रार्थना मेें उसके साथ बातचीत करने से आपकी भक्ति गहरी हो जाएगी और वह आपके दिमाग को और अधिक रोमांचकारी और आंतरिक ज्ञान के लिए खोल देगा कि वह कौन है और वह आपके जीवन में क्या ढूंढ़ता है। आप अपनी खुशी के लिए उसके अविश्वसनीय प्रावधान के आश्चर्यजनक विवरण की खोज करेेंगे। लेकिन याद रखेें, कि अन्य व्यक्तिगत संबंधों की तरह ही प्रेम की कमी, स्वर्ग को गुलामी मेें बदल सकता है। जब हम मसीह और उसके उदाहरण से प्रेम करना बंद कर देते हैैं, तो धर्म का अस्तित्व केवल प्रतिबंधोों के समूह के ज़बरन अनुपालन के रूप मेें रह जाएगा।
13. कैसे आप उसके (यीशु) साथ अपने परिवर्तित जीवन वाले रिश्ते के बारे में सब को कैसे बता सकते हैैं?
“अतः उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें” (रोमियों 6:4, 6)। “क्योंकि मैैं तुम्हारे विषय में ईश्वरिये धुन लगाए रहता हूँ, इसलिए कि मैैंने एक ही पुरुष ... कुँवारी के सामान मसीह को सौंप दूँ”(2 कुरिन्थियों 11:2)।
उत्तर: बपतिस्मा एक ऐसे व्यक्ति के जीवन मेें तीन महत्वपूर्ण घटकों का प्रतीक है जिसने मसीह को स्वीकार किया है:
(1) पाप में मृत्यु, (2) मसीह में एक नए जीवन के लिए जन्म, और (3) अनंत काल तक यीशु के साथ आत्मिक “विवाह”। यह आत्मिक विवाह समय के साथ तब तक मजबूत और मीठा होता जाएगा, जब तक की हम प्रेम में जीना जारी रखते हैैं।
परमेश्वर हमारी आत्मिक विवाह को सुनिश्चित करता है।
अनन्त काल तक यीशु के साथ अपने आत्मिक विवाह को सुनिश्चित करने के लिए ही परमेश्वर ने आपको कभी न त्यागने का वादा किया है (भजन संहिता 55:22; मत्ती 28:20; इब्रानियों 13:5), बीमारी और स्वास्थ्य में आपकी देखभाल (भजन संहिता 41:3; यशायाह 41:10), और हर ज़रूरत को पूरा करने का वादा किया है जो संभवतः आपके जीवन में विकसित हो सकती है (मत्ती 6:25-34)। जैसे की आप ने उसे विश्वास से ग्रहण किया है, वैसे ही भविष्य की हर ज़रूरत के लिए उस पर भरोसा करते रहेें और वह आपको कभी भी निराश नहीं करेगा।
14. क्या आप अभी तुरंत यीशु को अपने जीवन में स्वीकार करना और एक नए जीवन का अनुभव शुरू करना चाहते हैैं?
उत्तर:
आपके प्रश्ननों के उत्तर
1. कैसे सिर्फ़ एक व्यक्ति की मृत्यु सारी मानवता के पापों के लिए हर्ज़ाना दे सकती है ? क्या होगा अगर हम परमेश्वर के द्वारा बचाए जाने के लिए अत्यधिक पापी हों ?
उत्तर: क्योंकि“सब ने पाप किया है” (रोमियों 3:23) और क्योंकि “पाप की मजदूरी मृत्यु है” (रोमियों 6:23), प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए जो पैदा हुआ है कुछ विशेष आवश्यकता है। केवल वह जिसका जीवन सभी मानव जाति के जीवन के बराबर है, सभी मानव जाति के पापों के लिए मर सकता है। क्योंकि यीशु सभी जीवों का निर्माता और लेखक है इसलिए जिस जीवन का उसने बलिदान दिया, वह उन सभी लोगों के जीवन से भी बड़ा था जो कभी जीते थे, “इसी लिए जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिए मध्यस्थता करने के लिए सर्वदा जीवित है” (इब्रानियों 7:25)।
2. यदि मैैं मसीह और उसकी क्षमा स्वीकार करता हूँ परन्तु फिर से पाप मेें गिरता हूूँ, तो क्या वह मुझे फिर से क्षमा करेगा?
उत्तर: यदि हम अपने पाप के लिए वास्तव मेें खेद करते हैैं और अंगीकार करते हैैं, तो हम हमेशा क्षमा प्राप्त करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैैं। “यदि हम अपने पापों को मान लेें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करके और हमेें सव अधर्म से शुद्ध करने के लिए विश्वासनीय और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)। मत्ती 6:12 भी देखेें।
3. मैैं अपनी पापी स्थिति मेें भी परमेश्वर से कैसे संपर्क कर सकता हूँ? क्या किसी पादरी या तेरे सेवक के द्वारा मेरे लिए प्रार्थना करवाना बेहतर नहीं होगा?
उत्तर: चूकिं यीशु मानव रूप में था और “वह सब बातों में हमारे समान परखा गया” (इब्रानियों 4:15) और वह विजयी हुआ (यूहन्ना 16:33), वह हमारे पापों को क्षमा कर सकता है; ऐसा करने के लिए हमेें एक मानव पादरी या सवेक की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, 1 तीमुथियुस 2:5 हमें विशषे रूप से बताता है कि “परमेश्वर और मनुष्यों के बीच मेें भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।” यीशु का जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान और आपके लिए निरंतर प्रार्थनाओं के कारण (रोमियों 8:34), आप परमश्वेर से संपर्क कर सकते हैैं - और आप उसके पास साहसपूर्वक जा सकते हैैं! (इब्रानियों 4:16)।
4. क्या परमेश्वर को मुझे बचाने मेें मदद करने के लिए मैैं कुछ कर सकता हूँ?
उत्तर: नहीं। उनकी योजना पूरी तरह से अनुग्रह की योजना है (रोमियों 3:24; 4:5); यह “परमेश्वर का उपहार” है (इफिसियों 2:8)। यह सच है कि जैसे ही परमेश्वर हमेें विश्वास के द्वारा अनुग्रह देता है, वह हमेें उसकी आज्ञा मानने की इच्छा और शक्ति भी देता है। इसके परिणामस्वरूप उसकी आज्ञाओं के लिए प्रेमी आज्ञाकारिता होती है। इसीलिए यहाँ तक कि यह आज्ञाकारिता परिणामस्वरूप परमश्वेर से निशुल्क अनुग्रह है! आज्ञाकारिता, सेवा और प्रेम की निष्ठा, शिष्यता का सही परीक्षण और स्वाभाविक फल - यीशु मसीह मेें विश्वास का परिणाम है।
5. जब परमेश्वर मेरे पाप को क्षमा करता है, क्या तब भी मुझे किसी प्रकार की तपस्या करने की ज़रूरत है?
उत्तर: रोमियों 8:1 कहता है, “अतः अब जो मसीह यीशु में है उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं।” यीशु ने हमारे अपराधों के लिए दण्ड का पूर्ण भुगतान किया, और जो विश्वास में इसे स्वीकार करते हैैं उन्हें शुद्ध होने के लिए तपस्या का कोई काम नहीं है, क्योंकि यीशु ने पहले से ही “हमेें हमारे पापों को धो दिया “(प्रकाशितवाक्य 1:5)। यशायाह 43:25 इस खूबसूरत वादे को साझा करता है: “मैैं वही हूँ जो अपने नाम के निमित तेरे अपराधों को ही मिटा देता हूँ और तेरे पापों को स्मरण न कूँरूगा।” मीका 7:18, 19 आपके लिए उसकी क्षमा की अंतिमता दिखाता है: “तेरे समान ऐसा परमश्वेर कहाँ है जो अधर्म को क्षमा करे और अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराध को ढाप दे? वह अपने क्रोध को सदा बनाए नहीं रहता, क्योंकि वह करुणा से प्रीति रखता है। वह फिर हम पर दया करेगा, और हमारे अधर्म के कामों को लताड़ डालेगा। तू हमारे सब पापों को गहिरे समुद्र में डाल देगा।”
सारांश पत्र
1. परमेश्वर ने सम्पूर्ण स्वर्ग को किस महान उपहारों के रूप में मनुष्य के लिए उँडेला? (1)
_____ बाइबल।
_____ उसका चर्च।
_____ यीशु मसीह।
_____ आज्ञा।
2. प्रेम का सबसे बड़़ा प्रदर््शन जिसे जगत ने कभी देखा था (1)
_____ रोटी और मछलियों।
_____ क्रूस पर यीशु की मृत्यु।
_____ पिन्तेकुस्त।
_____ पतरस का अंगीकार।
3. क्रूस पर मसीह का बलिदान किसके लिए था? (1)
_____ प्रत्येक।
_____ केवल धर्मी ।
_____ केवल दुष्ट।
_____ उद्धार के लिए जो लोग पूर्व निर्धारित हैैं
4. परमेश्वर सबसे अधिक किसे प्रेम करता है? (1)
_____ कलीसिया के सदस्य।
_____ वेश्याओं और चोरोों।
_____ सभोों से एक जैसे।
_____ पुनः जन्म लेने वाले मसीहियों से।
5. मसीह मानव परिवार मेें पैदा हुआ था ताकि (1)
_____ पाप के लिए दण्ड का भुगतान करे।
_____ जानेें कि हम कितने कमजोर हैैं।
_____ एक अच्छा बढ़ई बनेें।
6. उद्धार प्राप्त करने के लिए, एक व्यक्ति को (1)
_____ बाइबल अध्ययन करना चाहिए।
_____ कलीसिया मेें रहेें।
_____ विभिन्न भाषाओं मेें बोलेें।
_____ इसे उपहार के रूप मेें स्वीकार करेें।
7. हम बचाए जाते हैैं (1)
_____ अच्छे कामों के कारण।
_____ अनुग्रह से।
_____ इच्छा से।
8. क्षमा और स्वीकृति हमारा नेतृत्व करती है ताकि हम जाने ...(2)
_____ कि हम पाप करना जारी रख सकते हैैं।
_____ नकारे सुख के लिए खेद मनाना।
_____ खुशी और शांति ।
_____ अनन्त जीवन का आश्वासन।
9. आज्ञाकारिता किस पर आधारित होना चाहिए (1)
_____ नरक का डर
_____ दोस्तों की मंज़ूरी की इच्छा के लिए।
_____ यीशु की स्थायी उपस्थिति / यीशु के लिए प्रेम।
10. मसीही आचरण, या आज्ञाओं को मनाना है, (1)
_____ विधिवादिता।
_____ सच्चे परिवर्तन के फलों मेें से एक।
_____ महत्वहीन
11.मसीह से विवाह का प्रतीक है (1)
_____ एक धर्मसंघ या मठ मेें शामिल होना।
_____ बपतिस्मा।
_____ दाहिने हाथ पर शादी की अंगूठी।
_____ ब्रह्मचर्य की शपथ लेना।
12. मसीह के साथ प्रेम मेें रहने के दो सबसे बड़़े तरीके हैैं (2)
_____ दैनिक बाइबल अध्ययन।
_____ एक उदार भेेंट देना।
_____ सूअर के माँस से दूर रहना।
_____ प्निरंतर प्रार्थना का प्रवृति ।
13. मेरी यह इच्छा है कि यीशु को अपने जीवन मेें स्वीकार करूँ और नए जन्म का अनुभव करूँ ।
_____ हाँ।
_____ नहीं