जिस प्रकार अपराध और हिंसा हमारे शहरों और घरों पर हावी हो रहे हैं, क्या यह समझदारी नहीं होगी कि शाँति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए, हम सभी को देश के नियमों का पालन करना चाहिए? खैर, सदियों पहले, परमेश्वर ने पत्थर मे अपनी व्यवस्था लिखी थी - और बाइबल कहती है कि हमें अभी भी इसका पालन करना है। परमेश्वर की व्यवस्था के किसी भी हिस्से का उल्लंघन करना हमेशा नकारात्मक नतीजे लाता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण , परमेश्वर के सभी नियमों का पालन करना हमारी शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करती है। चूँकि इतनी सारी चीज़ें दाँव पर हैं, क्या आपके जीवन में परमेश्वर की दस आज्ञाओं के स्थान पर गंभीरता से विचार करने के लिए कुछ मिनट देना महत्त्वता नहीं रखता?

1. क्या परमेश्वर ने वास्तव में दस आज्ञाओं को खुद लिखा है?

“तब उसने उसको अपनी उंगली से लिखी हुई साक्षी देनेवाली पत्थर की दोनों तख्तियाँ दीं। ... और वे तख्तियाँ परमेश्वर की बनाई हुईं थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था।” (निर्ग मन 31:18; 32:16)।

उत्तर: हाँ! स्वर्ग के परमश्वेर ने अपनी उंगली से पत्थर की पट्टियों पर दस आज्ञाएं लिखीं।

2. परमेश्वर के अनुसार पाप की परिभाषा क्या है?

“पाप तो व्यवस्था का है” (1 यूहन्ना 3:4)।

उत्तर: पाप परमेश्वर की दस आज्ञाओं को तोड़ना है। परमेश्वर की आज्ञा उत्तम (भजन संहिता 19:7), और इसके सिद्धांतों में हर कल्पनीय पाप शामिल है। आज्ञाओं में मनुष्य का सब कुछ शामिल है “मनुष्य का संपूर्ण कर्तव्य यही है” (सभोपदेशक 12:13)। कुछ भी नहीं छोड़ा गया है।

3.परमेश्वर ने हमें दस आज्ञाएँ क्यों दीं?

“जो व्यवस्था को मानता है, वह धन्य होता है” (नीतिवचन 29:18)। “मेरी आज्ञों को रखना; क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तु कुशल से रहेगा” (नीतिवचन 3:1, 2)।

उत्तर क: सुखी, बहुतायत के जीवन के मार्ग दर्शक के रूप में। परमश्वेर ने हमें खुशी, शांति, लम्बा जीवन, संतुष्टि, उपलब्धियाँ और अन्य सभी बड़ी आशीषों का अनुभव करने के लिए बनाया है जिनकी हमें चाह है। परमेश्वर की व्यवस्था एक मानचित्र है जो इस सर्वोच्च आनंद को खोजने के लिए सही मार्ग दर्शन करता है। “व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है” (रोमियों 3:20)। “वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता: व्यवस्था यदि न कहती, की लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता”
(रोमियों 7:7)।

उत्तर ख: हमें सही और गलत के बीच का अंतर दिखाने के लिए। परमेश्वर की व्यवस्था एक दर्पण की तरह है (याकूब 1:23-25)। जिस तरह से दर्पण में हमारे चहेरे की गंदगी दिखती है उसी प्रकार यह हमारे जीवन की गलतियों को दिखाती है। परमश्वेर की व्यवस्था रूपी दर्पण में अपने जीवन को सावधानीपूर्वक जांचना ही एकमात्र तरीका है जिससे हम यह जान सकते हैं कि हम पाप कर रहे हैं या नहीं। एक मिश्रित दुनिया के लिए शांति परमेश्वर की दस आज्ञाओं में पायी जा सकती है। यह हमें बताती है कि हमारी सीमा क्या है!

“और यहोवा ने हमें ये सब विधियाँ पालन करने की आज्ञा दी ... इस रीति से सदैव हमारा भला हो” (व्यवस्थाविवरण 6:24)। “मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूँगा! जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है” (भजन संहिता 119:117, 118)।

उत्तर ग: हमें खतरे और दुःखद घटना से बचाने के लिए। परमेश्वर की व्यवस्था चिड़ियाघर के एक मजबूत पिंजरे की तरह है जो हमें भयंकर, विनाशकारी जानवरों से बचाता है। यह हमें झूठ, हत्या, मूर्तिपूजा, चोरी, और कई अन्य बुराइयों से बचाता है जो जीवन, शांति और ख़ुशी को नष्ट करते हैं। सभी अच्छे नियम रक्षा करतें हैं, और परमेश्वर के नियम कोई अपवाद नहीं है।

“यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं” (1 यूहन्ना 2:3)।

उत्तर घ: यह हमें परमेश्वर को जानने में मदद करता है।

विशेष टिपण्णी: परमेश्वर के अन्नत सिद्धतां हर व्यक्ति के स्वभाव में उस परमेश्वर के द्वारा लिखे गए हैं जिसने हमें बनाया है। लेखन अस्पष्ट और धुंधला हो सकता है,ले किन यह अभी भी मौजदू है। हम उनेक साथ समानता से रहने के लिए बनाए गए थे । जब हम उनकी अनदे खी करते हैं,तो इसका परिणाम हमेशा तनाव, अशाँति और शोक होता हैं - जसैे सुरक्षित वाहन चलाने के नियमों की अनदेखी करने से गंभीर चोट या मौत हो सकती है।

4. Why is God’s law exceedingly important to you personally?

4. व्यक्तिगत तौर पर परमेश्वर की व्यवस्था आपके लिए क्यों अत्यन्त आवश्यक हैं? 

“तुम उन लोगों के समान वचन बोलो और काम करो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा” (याकूब 2:12)।

उत्तर: क्योंकि दस आज्ञाएँ मापदंड हैं जिनके द्वारा परमेश्वर स्वर्गीय न्याय में लोगों की जांच करता है।

5. क्या परमेश्वर की व्यवस्था (दस आज्ञाएं) कभी भी बदली या समाप्त की जा सकती हैं?

“आकाश और पृथ्वी का टल जाना व्यवस्था के एक बिन्दु के मिट जाने से सहज है” (लूका 16:17)। “मैं अपनी वाचा न तोड़ूँगा, और जो मेरे मुँह से निकल चुका है उसे न बदलूंगा” (भजन संहिता 89:34)। “उसके सब उपदेश विश्वासयोग्य हैं, वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे” (भजन संहिता 111:7, 8)।”

उत्तर: नहीं। बाइबल स्पष्ट कहती है कि परमेश्वर के नियम को बदला नहीं जा सकता है। आज्ञाएँ परमेश्वर के पवित्र चरित्र के प्रकाशित सिद्धांत हैं और वे उसके राज्य की नींव हैं। जब तक परमेश्वर मौजूद है तब तक वे सत्य रहेंगे। यह सारणी परमेश्वर और उसकी व्यवस्था की समान विशेषताओं को दिखाता हैं, जो यह बताते हैं कि दस आज्ञाएँ वास्तव में परमेश्वर के चरित्र का लिखित रूप है – जो इसलिए लिखे गए हैं कि हम परमेश्वर को बेहतर तरीके से समझ सके । परमेश्वर की व्यवस्था को बदलना परमेश्वर को स्वर्ग से हटाने से अधिक संभव नहीं है। यीशु ने हमें दिखाया कि व्यवस्था - जो पवित्र जीवन जीने का एक नमूना है – मानव रूप में कैसा दिखता है। परमेश्वर का चरित्र बदल नहीं सकता; इसलिए, न ही उसके नियम बदल सकते हैं।

6. क्या यीशु ने इस जगत में रहने के दौरान परमेश्वर की व्यवस्था को समाप्त कर दिया?

“यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ” (मत्ती 5:17, 18)।

Answer

उत्तर: नहीं! यीशु ने विशेष रूप से जोर देकर कहा कि वह व्यवस्था को नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि उसे पूरा करने के लिए आया था)। व्यवस्था को मिटाने के बजाए यीशु ने पवित्र जीवन के लिए उत्तम मार्ग दर्शक के रूप में उसकी अधिक बड़ाई की (यशायाह 42:21)। मिसाल के तौर पर, यीशु ने कहा कि “तुम हत्या मत करना”, उसने बिना किसी कारण के क्रोध करने (मत्ती 5:21, 22) और घृणा (1 यूहन्ना 3:15) करने की निंदा की, और बताया कि वासना व्यभिचार का एक रूप है (मती 5:27, 28)। उसने कहा, “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे” (यूहन्ना 14:15)।

7. क्या वे लोग बचाये जायेंगे, जो जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ना जारी रखतें हैं?

“पाप की मजदूरी तो मृत्यु है” (रोमियों 6:23)। “पापियों को उसमें से नष्ट” करेगा (यशायाह 13:9)। “क्योंकि जो कोई सारी व्सवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहर जाएगा” (याकुब 2:10)।

उत्तर: दस आज्ञाएँ हमें पवित्र जीवन में मार्ग दर्शन करती है। अगर हम आज्ञाओं में से किसी एक को भी अनदेखा करते हैं, तो हम ईश्वरीय रूपरेखा के एक अनिवार्य हिस्से की उपेक्षा करते हैं। यदि एक श्रृंखला की केवल एक कड़ी टूटी हुई है, तो इसका पूरा उद्देश्य नष्ट हो गया है। बाइबल कहती है कि जब हम जानबूझकर परमेश्वर के आज्ञा को तोड़ते हैं, तो हम पाप कर रहे हैं (याकूब 4:17) क्योंकि हमने अपने लिए उसकी इच्छा को ठुकरा दिया है। केवल वही लोग जो उसकी इच्छा पूरी करते हैं, स्वर्ग के राज्य में प्रवशे कर सकते हैं। बेशक, परमश्वेर किसी को भी क्षमा करेगा जो वास्तव में पश्चाताप करता है और खुद को बदलने के लिए मसीह की शक्ति स्वीकार करता / करती है।

8. क्या कोई भी व्यवस्था का पालन करने के द्वारा बचाया जा सकता है?

“क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा” (रोमियों 3:20)। “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है; और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है” (इफिसियों 2:8, 9)।

उत्तर: नहीं! इसका जवाब बहुत सरल है। आज्ञा पालन से कोई भी बचाया नहीं जा सकता है। उद्धार यीशु मसीह का निःशुल्क भेंट के रूप में केवल अनुग्रह के द्वारा मिलता है, और हम इस उपहार को विश्वास से प्राप्त करते हैं, न कि हमारे कार्यों से। व्यवस्था एक दर्पण के रूप में कार्य करता है जो हमारे जीवन में पाप को संकेत करता है। जैसे दर्पण आपको अपने चेहरे की गंदगी दिखा सकता है लेकिन आपका चेहरा साफ नहीं कर सकता है,उसी प्रकार पाप क्षमा और शुद्धता केवल मसीह से आती है।

9. फिर, एक मसीही के चरित्र में सुधार के लिए व्यवस्था क्यों आवश्यक हैं?

“परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का [सम्पूर्ण कर्त्तव्य] यही है¬” (सभोपदेशक 12:13)।
“व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है” (रोमियों 3:20)।

उत्तर: क्योंकि मसीही जीवन के लिए पूर्ण स्वरूप या “संपूर्ण कर्तव्य” परमेश्वर की व्यवस्था में निहित है। एक छः वर्षीय की तरह, जिसने खुद से एक मापक बनाया, खदु को माप लिया, और अपनी माँ से कहा कि वह 12 फीट लंबा था, खुद को मापने के लिए हमारे अपने पैमाने कभी सुरक्षित नहीं हो सकते।
हम तब तक नहीं जानते कि हम पापी हैं जब तक कि हम सही मापदंड यानी परमेश्वर की व्यवस्था में ध्यान से नहीं देखते हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि अच्छे काम करने से उद्धार यक़ीनन मिलती है, भले ही वे व्यवस्था को अनदेखा करें (मत्ती 7:21-23)। इसलिए, वे सोचते हैं कि वे धर्मी हैं और बचाए जा चुके हैं, जबकी वास्तव में, वे पापी हैं और खोए हुए हैं। “यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं” (1 यूहन्ना 2:3)।

10. वास्तव में परिवर्तित मसीही को परमेश्वर की व्यवस्था पालन करने में क्या चीज़ सक्षम करती है?

“मैं अपनी व्यवस्था को उसके मनों में डालूँगा, और उसे उसके हृदयों में लिखूँगा” (इब्रानियों 8:10)। “जो मुझे सामर्थ देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ” (फिलिप्पियों 4:13)। “परमेश्वर ने ... अपने ही पुत्र को भेजकर ... इसलिए कि व्यवस्था की विधि हममें ... पूरी की जाए” (रोमियों 8:3, 4)

उत्तर: मसीह न केवल पश्चाताप करने वाले पापियों को क्षमा करता है, बल्कि वह उनमें परमेश्वर के स्वरूप को भी पुनः स्थापित करता है। वह उनमें निवास करके उन्हें अपनी व्यवस्था के अनुरूप बनाता है। “तुम्हें नहीं करना चाहिए” एक सकारात्मक वादा बन जाता है कि वह मसीही चोरी नहीं करेगा, झूठ नहीं बोलेगा, हत्या नहीं करेगा, इत्यादि, क्योंकि यीशु हमारे भीतर रहता है और सब उसके नियंत्रण में है। परमेश्वर अपने नैतिक व्यवस्था को नहीं बदलेगा, लेकिन उन्होंने पापियों को बदलने के लिए यीशु के माध्यम से एक प्रावधान बनाया ताकि हम उस नियम के मापदंड में खरे उतर सके ।

11. लेकिन क्या एक मसीही जो विश्वास करता है और अनुग्रह के अधीन जीवित है व्यवस्था पालन करने से मुक्त नहीं है?

“तब तुम पर पाप [पाप तो व्यवस्था का विरोध है – 1 युहन्ना 3:4] की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन्अ नुग्रह के अधीन हो। तो क्या हुआ? क्या हम इसलिए पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं!” (रोमियों 6:14, 15)। “तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते है? कदापि नहीं वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं” (रोमियों 3:31)।

उत्तर: नहीं! शास्त्र इसके ठीक विपरीत सिखाते हैं। अनुग्रह एक बंदी के लिए अधिकारी की क्षमा के समान है। यह उसे क्षमा करता है, लेकिन यह उसे एक और कानून तोड़ने की स्वतंत्रता नहीं देता है। अनुग्रह के अधीन, क्षमा पाए व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर की व्यव्सथा को उद्धार के लिए कृतज्ञ होकर मानना चाहेगा। एक व्यक्ति जो परमेश्वर के नियम को मानने से इंकार करता है और कहता है कि वह अनुग्रह के तहत है, तो वह गंभीर रूप से गलत है।

12. क्या परमेश्वर की दस आज्ञाओं की पुष्टी नए नियम में भी की गई है?

उत्तर: हां - और बहुत स्पष्ट रूप से। निम्नलिखित वचनों को बहुत सावधानी से पढ़ें।

नए निय म में परमेश्वर की व्यवस्था।
1. “तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर” (मत्ती 4:10)।
2. “हे बालको, अपने आप को मरूतों से बचाए रखो” (1 यूहन्ना 5:21)। “चूँकि हम ईश्वर की संतान हैं, इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए की ईश्वरीय स्वभाव सोने या चांदी या पत्थर की तरह है, जो कला और मनुष्य के द्वारा तैयार की गई है” (प्रेरितों 17:29)।
3. “ताकि परमेश्वर के नाम और उपदेश की निन्दा न हो” (1 तीमुथियुस 6:1)।
4. “क्योंकि सातवें दिन के विषय में कहीं यों कहा है, “परमेश्वर ने सातवें दिन अपने सब कामों को निपटा कर के विज्ञा किया। अतः जान लो कि परमेश्वर के लोगों के लिए सब्बत का विश्राम बाकी है; क्योंकि जिसने उसके विश्राम में प्रवेश किया है, उसने भी परमेश्वर के समान अपने कामों को पूरा करके विश्राम किया है” (इब्रानियों 4:4, 9, 10)।
5. “अपने पिता और अपनी माता का आदर करना” (मत्ती 19:19)।
6. “हत्या न करना” (रोमियों 13:9)।
7. “व्यभिचार न करना” (मत्ती 19:18)।
8. “चोरी न करना” (रोमियों 13:9)।
9. “झूठी गवाही न देना” (रोमियों 13:9)।
10. “लालच मत कर” (रोमियों 7:7)।

पुराने नियम में परमेश्वर की व्यवस्था।
1. “तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना” (निर्गमन 20:3)।
2. “तू अपने लिए कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल मे है। तू उसको दण्डवत न करना, और न उसकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला परमेश्वर हूँ , और जो मुझसे बैर रखते हैं, उनके बेटों को तो और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूँ, और जो मुझसे प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को रखते हैं उन हज़ारों पर करूणा किया करता हूँ ” (निर्गमन 20:4-6)।
3. “तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा” (निर्गमन 20:7)।
4. “तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना। छः दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम-काज करना; परन्तु सातवाँ दिन तेरा परमश्वेर यहोवा के लिए विश्रामदि न है। उसमें न तो तू किसी भाँति का काम-काज करना, और न तेरा, न तेरी बेटी, न तेरा दोस्त, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेसी जो तेरे फाटकों के भीतर हो। क्योंकि छः दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें हैं, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्राम दिन को आशिष दी और उसको पवित्र ठहराया” (निर्गमन 20:8-11)।
5. “तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, उससे जो देश तेरा परमश्वेर यहोवा तुझे देता उसमें तू बहुत दिन तक रहने पाए” (निर्गमन 20:12)।
6. “तू खून न करना” (निर्गमन 20:13)।
7. “तू व्यभि चार न करना” (निर्ग मन 20:14)।
8. “तू चोरी न करना” (निर्गमन 20:15)
9. “तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना” (निर्गमन 20:16)।
10. “तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी के स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास-दासी या बैल-गधे का, न किसी की वस्तु का लालच करना” (निर्गमन 20:17)।

13. Are God’s law and Moses’ law the same?

13. क्या परमेश्वर की व्यवस्था और मूसा की व्यवस्था एक ही है?

उत्तर: नहीं - वे एक नहीं हैं। निम्नलिखित अंतरों का अध्ययन करें: मूसा की व्यवस्था में पुराने नियम के अस्थायी, औपचारिक विधि शामिल थे। यह याजकीय, बलिदान, विधियों, अन्नबलि और अर्घ की वस्तुएँ, आदि का नियंत्रण करता था जो क्रूस का पूर्वा भास करते थे। यह व्यवस्था “वंश आने तक” के लिए था, और वह वंश मसीह था (गलतियों 3:16, 19)।मूसा की व्यवस्था की विधि और रीति मसीह के बलिदान की ओर इशारा करते थे। जब वह मर गया,यह व्यवस्था समाप्त हो गई, लेकिन दस आज्ञाएँ (परमेश्वर की व्यवस्था) “सदा सर्वदा अटल रहेंगे” (भजन संहिता 111:8)। दानिय्येल 9:10, 11 में दो व्यवस्थाओं को स्पष्ट किया है।

ध्यान दें: परमेश्वर की व्यवस्था कम से कम तब से है जब से पाप का अस्तित्व है। बाइबिल कहती है, “जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ उसका उल्लंघन भी नहीं [पाप]” (रोमियों 4:15)। तो परमेश्वर की दस आज्ञाएँ आदि से अस्तित्व में थीं। मानव ने व्यवस्था को तोड़ दिया (पाप किया-1 यूहन्ना 3:4)। पाप (या परमेश्वर के नियम को तोड़ने) के कारण, मूसा की व्यवस्था तब तक के लिए दी गई थी (या सम्मिलित- गलातियों 3:16, 19) जब तक की मसीह न आता और न मरता। दो अलग-अलग व्यवस्था शामिल हैं: परमेश्वर की व्यवस्था और मूसा की व्यवस्था।

 मूसा की व्यवस्था  परमेश्वर की व्यवस्था
“मूसा की व्यवस्था” कहा जाता है (लूका 2:22)। “परमेश्वर की व्यवस्था” कहा जाता है (यशायाह 5:24)।
“व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थीं” कहा जाता है
(इफिसियों 2:15)।
“राज व्यवस्था” कहा जाता है (याकूब 2:8)।
मूसा द्वारा एक पुस्तक में लिखा गया (2 इतिहास 35:12)। पत्थर पर परमेश्वर द्वारा लिखित (निर्गमन 31:18; 32:16)।
संदुक के पास रखी गयी (व्यवस्थाविवरण 31:26)। संदुक में रखी गयी (निर्गमन 40:20)।
क्रूस में मिटा दिया (इफिसियों 2:16)। सदा अटल रहेगा (लूका 16:17)।
अपराधों के कारण बाद में दी गई (गलतियों 3:19)। पाप की पहिचान होती है (रोमियों 7:7; 3:20)।
हमारे विरोध में था (कुलुस्सियों 2:14)। कठिन नहीं है (1 यूहन्ना 5:3)।
किसी का न्याय नहीं करता है (कुलुस्सियों 2:14-16)। सबका न्याय करता है (याकुब 2:10-12)।
शारीरिक (इब्रानियों 7:16)। आत्मिक (रोमियों 7:14)।
किसी बात की सिद्धि नहीं करती है (इब्रानियों 7:19)। व्यवस्था खरी है (भजन संहिता19:7)

 

14. शैतान उन लोगों के बारे में कैसा महसूस करता है जो परमेश्वर की दस आज्ञाओं के अनुरूप अपने जीवन को ढाल देते हैं?

“तब अजगर [शैतान] स्त्री पर [सच्चे चर्च] क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया” (प्रकाशितवाक्य 12:17)। “पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञों को मानते और यीशु पर विश्वास रखते हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:12)।

उत्तर: शैतान उन लोगों से नफरत करता है जो परमेश्वर की व्यवस्था को मानते हैं क्योंकि व्यवस्था सही जीवन का एक शैली है, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वह उन सभी का विरोध करता है जो परमेश्वर की व्यवस्था को मानते हैं। परमेश्वर के पवित्र मानक के खिलाफ अपने युद्ध में, वह अब तक धार्मिक अगुओं का इस्तेमाल दस आज्ञाओं से इनकार करने के लिए करता रहा हैं जबकि साथ ही मानव की परंपराओं को कायम रखते हुए। कोई आश्चर्य नहीं कि यीशु ने कहा, “तुम अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो? ... और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की विधियों का धर्मो पदेश करके सिखाते हैं” (मती 15:3, 9)। और दाऊद ने कहा, “वह समय आता है, कि यहोवा काम करे क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है” (भजन संहिता 119:126)। मसीहियों को जागृत होना चाहिए और परमेश्वर की व्यवस्था को अपने दिल और जीवन में उसके सही स्थान पर पुनः स्थापित करना चाहिए।

15. क्या आपको विश्वास है कि एक मसीह के लिए दस आज्ञाओं का पालन करना जरूरी है।

आपका उत्तर:


आपके प्रश्नों के उत्तर

1. क्या बाइबिल नहीं कहती कि व्यवस्था दोषपूर्ण थी या है?

उत्तर: नहीं। बाइबल कहती है कि लोग दोषपूर्ण थे। परमेश्वर को “उनमें दोष” मिला (इब्रानियों 8:8)। और रोमियों 8:3 में बाइबल कहती है कि व्यवस्था "शरीर के कारण दुर्बल था।" यह हमेशा वही कहानी है। व्यवस्था सही है, लेकिन लोग दोषपूर्ण, या कमजोर हैं। इसलिए परमेश्वर चाहता है कि उसका पुत्र उसके लोगों के भीतर रहे ताकि मसीह के निवास से "व्यवस्था की विधि हममें जो शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए" (रोमियों 8:4)।

2. इसका मतलब क्या है जब गलतियों 3:13 कहता है कि हम व्यवस्था के शाप से छुड़ाए गए है?

उत्तर: व्यवस्था का शाप मृत्यु है (रोमियों 6:23)। मसीह ने "हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु" का स्वाद चखा (इब्रानियों 2:9)। इस प्रकार उन्होंने व्यवस्था (मृत्यु) के अभिशाप से सभी को छुड़ाया और इसके स्थान पर अनन्त जीवन प्रदान किया।

3. क्या कुलुस्सियों 2:14-17 और इफिसियों 2:15 यह नहीं सिखाते हैं कि परमेश्वर की व्यवस्था क्रूस पर समाप्त हुई?

उत्तर: नहीं। ये दोनों अंश “विधियों” या मूसा की व्यवस्था के संदर्भ में हैं, जो बलिदान प्रणाली और याजकीय संचालन करने वाली औपचारिक व्यवस्था थी। ये विधियाँ क्रूस की ओर इशारा करती थी और मसीह की मृत्यु में समाप्त हो गई, जैसा की परमेश्वर की योजना थी। मूसा की व्यवस्था "वंश के आने तक" के लिए जोड़ा गया था और "अंश ... मसीह है" (गलतियों 3:16, 19)। परमश्वे र की व्यवस्था को यहाँ शामिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पौलुस ने क्रूस के कई वर्ष बाद भी कहा कि वह पवित्र और दोषहीन है (रोमियों 7:7, 12)

4. बाइबल कहती है "प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है" (रोमियों 13:10)। मत्ती 22:37-40 हमें परमेश्वर से प्यार करने और अपने पड़ोसियों से प्यार करने का आदेश देती है, और इन शब्दों के साथ समाप्त होती है, "ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।" क्या ये आज्ञा दस आज्ञाओं को प्रतिस्थापित करते हैं?

उत्तर: नहीं। दस आज्ञाएँ इन दो आज्ञाओं पर टिकीं हैं जिस प्रकार हमारी 10 उँगलियाँ हमारे दोनों हाथों से जुड़ी हैं। वे अविभाज्य हैं। परमेश्वर से प्यार पहले चार आज्ञाओं (जो परमेश्वर से संबंधित है) को मानने में एक खुशी प्रदान करता है, और हमारे पड़ोसी के प्रति प्यार बाद की छः (जो हमारे पड़ोसी से संबंधित है) को मानने में खुशी देती है। प्रेम व्यवस्था को आज्ञाकारिता की कठिनाइयों को दूर करके और व्यवस्था को मानने में प्रसन्नता देकर पूरी करती है। (भजन संहिता 40:8)। जब हम वास्तव में कि सी व्यक्ति से प्यार करते हैं, तो उसके अनुरोधों का सम्मान करना एक खुशी बन जाता है। यीशु ने कहा, "यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे" (यूहन्ना 14:15)। परमेश्वर से प्यार करना और उसकी आज्ञाओं को न मानना असंभव है, क्योंकि बाइबिल कहती है, "क्योंकि परमेश्वर से प्रेम रखना यह है कि हम उसकी आज्ञाओं को मानें; और उसकी आज्ञाएँ कठिन नहीं" (1 यूहन्ना 5:3)। "जो कोई यह कहता है, ‘मैं उसे जान गया हूँ ,’ और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है और उसमें सत्य नहीं" (1 यूहन्ना 2:4)

5. क्या 2 कुरिन्थियों 3:7 नहीं सि खाते हैं कि पत्थर में उत्कीर्ण व्यवस्था को दूर किया जाना था?

उत्तर: नहीं। लिखा है कि मूसा की व्यवस्था के कार्यों की "महिमा" को दूर किया जाना था, परन्तु व्यवस्था को नहीं। 2 कुरिन्थियों 3:3-9 के पूरे लेख को सावधानी से पढ़ें। इसका विषय व्यवस्था या उसकी स्थापना को समाप्त करना नहीं है, बल्कि, व्यवस्था के स्थान में परिवर्तन है, यानी पत्थर की पट्टियों से हृदय की पट्टियों पर। मूसा की विधियों के अधीन व्यवस्था पत्थरों पर था। पवित्र आत्मा के कार्यों के अधीन, मसीह के द्वारा, व्यवस्था दिल में लिखा जाता है (इब्रानियों 8:10)। विद्यालय के सूचना पट्ट पर लिखा गया कि नियम केवल तब प्रभावी होता है जब वह छात्र के दिल में प्रवेश करता है। इसी प्रकार, परमेश्वर का नियम रखना एक सुखद और जीवन का आनंददायक तरीका बन जाता है क्योंकि मसीहियों के पास परमेश्वर और मनुष्य दोनों के लिए सच्चा प्यार है।

6. रोमियों 10:4 कहता है कि "मसीह व्यवस्था का अंतंत है।" तो यह खत्म हो गया है, है ना?

उत्तर: इस पद में “अंत” का अर्थ उद्देश्य या वस्तु है, जैसा कि यह याकूब 5:11 में कहता है। अर्थ स्पष्ट है। मनुष्यों को यीशु की ओर ले जाने के लिए - जहाँ उन्हें धार्मिकता मिलती है - वह लक्ष्य, उद्देश्य या व्यवस्था का अंत है।

7. इतने सारे लोग परमेश्वर की व्यवस्था के बाध्य कारी दावों से इंकार क्यों करते हैं?

उत्तर: "क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन है और न हो सकता है; और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं रख सकते। परन्तु जबकि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तु शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं" (रोमियों 8:7-9)।

8. क्या पुराने नियम के धर्मी लोग व्यवस्था के द्वारा बचाए गए थे?

उत्तर: व्यवस्था के द्वारा कोई कभी भी बचाया नहीं गया है। वे सभी जो सभी युगों में बचाए गए हैं उन्हें अनुग्रह से बचाया गया है। यह "अनुग्रह ... जो मसीह यीशु में सनातन से हम पर हुआ है" (2 तीमुथियुस 1:9)। व्यवस्था केवल पाप की पहचान कराती है। सिर्फ मसीह बचा सकता है। नूह को "अनुग्रह मिला" (उत्पत्ति 6:8); मूसा ने अनग्रह पाया (निर्गमन 33:17); जंगल में इस्राएलियों ने अनुग्रह पाया (यिर्मयाह 31:2); और हाबिल, हनोक, अब्राहम, इसहाक, याकूब, यूसुफ और कई अन्य पुराने नियम के पात्रों को इब्रानियों 11 के अनुसार "विश्वास से" बचाया गया था। वे क्रूस की प्रतीक्षा करने के द्वारा बचाए गए थे, और हम इसे वापस देखकर। व्यवस्था जरूरी है क्योंकि , एक दर्पण की तरह, यह हमारे जीवन में "गंदगी" का खुलासा करता है। इसके बिना, लोग पापी हैं लेकिन इसके बारे में उन्हें पता नहीं हैं। हालांकि, व्यवस्था में बचाने वाली कोई शक्ति नहीं है। यह केवल पाप को संकेत कर सकता है। यीशु, और सिर्फ़ वही, पाप से एक व्यक्ति को बचा सकता है। यह हमेशा सच रहा है, पुराने नियम के समय से भी (प्रेरितों 4:10, 12; 2 तीमुथियुस 1:9)

9. व्यवस्था के बारे में चिंता क्यों करें? क्या विवेक एक सुरक्षित मार्गदर्शक नहीं है?

उत्तर: नहीं! बाइबिल एक बुरी विवेक, एक अशुद्ध विवेक, और एक शुष्क विवेक की बात करती है - इनमें से कोई भी सुरक्षित नहीं है। "ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक जान पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है" (नीतिवचन 14:12)। ईश्वर कहता है, "जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख र्ख है" (नीतिवचन 28:26)।


सारांश पत्र

1. दस आज्ञाएँ किस के द्वारा लिखी गईं (1)

_____  परमेश्वर।
_____  मूसा।
_____  एक अज्ञात व्यक्ति।

2. बाइबल के अनुसार, पाप... (1)

_____  एक व्यक्तित्व की कमी।
_____  परमेश्वर की व्यवस्था का विरोध।
_____  जो भी गलत लगता है।

3. उन बयानों को सही चिन्ह करें जो परमेश्वर के नियम के बारे में सच्चाई बताते हैं: (4)

_____  यह खुश रहने के लिए एक आदर्श मार्ग दर्शक है।
_____  एक दर्पण की तरह, यह पाप की पहचान कराता है।
_____  यह बोझिल और दमनकारी है।
_____  यह मुझे बुराई से बचा सकता है।
_____  इसमें परमेश्वर के समान विशेषताएँ हैं।
_____  इसे नए नियम में रद्द कर दिया गया था।
_____  श्राप है।

4. परमेश्वर की दस आज्ञा व्यवस्था (1)

_____  केवल पुराने नियम के समय के लिए था।.
_____  क्रूस पर यीशु द्वारा समाप्त कर दिया गया।.
_____  अपरिवर्तनीय है।

5. न्याय के दिन मैं बचाया जाऊँगा यदि (1)

_____  मैं अच्छे कार्यों का उत्कृष्ट रिकॉर्ड बनाए रखता हूं।
_____  मैं परमेश्वर से प्यार करता हूं, भले ही मैं दस आज्ञाओं का पालन करता हूं या नहीं।
_____  यीशु के साथ मेरा व्यक्तिगत प्रेम संबंध मुझे उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।.

6. लोग यूं बचाए जाते हैं (1)

_____ व्यवस्था को मानने से।
_____ व्यवस्था को तोड़ने से।
_____ सिर्फ़ यीशु ख्रीष्त द्वारा।

7. वास्तव में परिवर्तित मसीही (1)

_____ मसीह की शक्ति के माध्यम से परमेश्वर की व्यवस्था को रखे।
_____ व्यवस्था की अनदेखी करे क्योंकि यह समाप्त हो गया है।.
_____ व्यवस्था का पालन करने को आवश्यक न माने।

8. अनुग्रह के अधीन रहने वाले व्यक्ति (1)

_____  पाप किए बिना दस आज्ञाओं को तोड़ सकता है।
_____  आज्ञा पालन से मुक्त है।
_____  खुशी से परमेश्वर के आज्ञाओं का पालन करेंगे।

9. प्रेम व्यवस्था को पूरा करता है क्योंकि (1)

_____  प्रेम व्यवस्था को समाप्त करता है।
_____  परमेश्वर और लोगों के प्रति सच्चे प्रेम व्यवस्था पालन करने में खुशी प्रदान करता है।
_____  आज्ञाकारिता से प्यार अधिक महत्वपूर्ण है।

10. मूसा की व्यवस्था में शामिल है(1)

_____  वही चीजें जो परमेश्वर की व्यवस्था में हैं।
_____  विधियों और बलिदानों की व्यवस्था, जो मसीह की ओर इशारा करते थे और क्रूस पर समाप्त हुए।
_____  हमेशा रखने की आवश्यकता है।

11. जो लोग दस आज्ञाओं का पालन करते हैं(1)

_____  वे सभी विधिवादी हैं।
_____  शैतान द्वारा उनका विरोध किया जाएगा, जो परमेश्वर और उसकी व्यवस्था से नफरत करता है।
_____  आज्ञा पालन के द्वारा बचाए जाते हैं।

12. मसीह और व्यवस्था के बारे में सही बातों की जांच करें: (4)

_____  यीशु ने व्यवस्था तोड़ दिया।
_____  यीशु व्यवस्था पालन करने का एक आदर्श मानव उदाहरण है।
_____  यीशु ने व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
_____  यीशु ने कहा, "यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।
_____  यीशु ने व्यवस्था को बड़ा किया और दिखाया कि इसमें पाप के सभी पहलू शामिल है।
_____  यीशु ने कहा कि व्यवस्था को बदला नहीं जा सकता है।

13.मेरा मानना है कि एक मसीही खुशी से परमेश्वर की दस आज्ञाओं का पालन करेगा, और मैं यीशु से मदद माँग रहा हूँ कि वह मेरे जीवन को अपने अनुरूप बनाए।

_____  हाँ।
_____  नहीं।